@ जहाँ तक soulmates की बात है तो गीता के ही अध्याय:8 श्लोक: 6 के अनुसार यथा:- यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् । तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ।। अर्थात् - हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस उस को ही प्राप्त होता है । @ अब कर्म के विषय में विचार करते हैं यथा :- गीता के ही अध्याय colonthree emoticon श्लोक: 5. न हि कश्चित्क्ष्णमपि जातु तिष्ठात्यकर्मकृत् । कार्यते ह्रवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुने: ।। अर्थात् - नि:संदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किये नहीं रहता +(मन, शरीर, विचार में गति को ही कर्म कहते हैं)+, क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रक्रुतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है । @ अब कर्मफल - संसार में दो ही चीजें हैं एक तो है चेतन और दूसरा है जड़ प्रकृति, प्रकृति में पाँच तत्व हैं यथा :-आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी । चूँकि जड़ प्रकृति में ज्ञान का अभाव होता है इसलिए वह कर्मफल देने में समर्थ नहीं है । कर्मफल देने में चेतन ही समर्थ है । ।। इति ।।